بھیڑکا بچہ

ابو عبود نامی ایک نیک آدمی تھا،۔ اس کے پاس ایک بھیڑکا بچہ  تھا جسے اس کے تمام دوست کھانا چاہتے تھے۔ چنانچہ  ایک رات سب دوست اکٹھے ہوئے تاکہ ایک ایسی تدبیر پر متفق ہو جائیں جس سے ابوعبود بھیڑ کے بچے کو ذبح کر کے ہمیں کھلائے۔

اگلے دن عبود کا ایک دوست ابو داوٗد آیا اور دروازے پر دستک دی۔ ابو داوٗد بولا؛

"اپنی بھیڑیں ذبح کرو، کیونکہ کل یا پرسوں قیامت کا دن ہے۔ "

ابوعبود نے اس سے کہا کہ میں تم پر یقین نہیں کرتا۔ ابو داوٗدچلا گیا ۔

 دوسرےدوست ابو عبداللہ نے آکر دروازہ کھٹکھٹایا۔عبود نے دروازہ کھولا ۔ ابو عبداللہ بولا ؛

"بھیڑ کے بچ جانے کا فائدہ ؟ کل یا پرسوںویسے بھی قیامت ہے۔"

لیکن عبود کو غصہ آیا اور اسے کہا کہ مجھ سے دور رہو، میں تمہاری بات نہیں مانتا۔

 پھر عبود کا تیسرا دوست آیا۔ اس نے بھی کہا کہ  کل  قیامت ہو گی اس لئے بھیڑکو ذبح کر دو۔

 یہاں ابوعبود نے اپنے آپ سے بات کی اور کہا کہ انہیں یقین ہے کہ  کل قیامت ہے شاید یہ لوگ ٹھیک کہہ رہے ہیں ۔

پھر اس نے اپنے دوستوں کو بلایا کہ وہ کل صبح ساحل سمندر پر بھیڑ کا بچہ ذبح کرے گا۔ صبح ہوتے ہی انہوں نے جمع ہو کربھیڑ کو  ذبح کر دیا۔

لیکن ابوعبود کے دوستوں نے اسے اکیلا  چھوڑ دیا اور اپنے کپڑے اتار کر نہر میں نہانے چلے گئے۔ کسی نے بھیڑ کا بچہ پکانے میں ابو عبود کی مدد نہیں کی۔ اب اس نے سوچا کہ وہ اپنے دوستوں کی بھیڑ کو ذبح کرنے کی اس چال سے دھوکہ کھا گیا  ہے۔اب اس نے بدلہ لینے کا سوچا۔

جب وہ بھیڑ کا بچہ پکا رہا تھا تو ابو عبود کو اپنے دوستوں  کے کپڑے ملے  جو انہوں نے نہر کے کنارے رکھے تھے۔ اس نے ان  کپڑوں کو اس بھیڑ کے بچے کو پکانے کے لیے ایندھن کے طور پر استعمال کر لیا  ۔

 اتنے میں عبود کے دوست تھکے ہارے پانی سے باہر آئے ۔ بھوک نے انہیں مار ڈالا تھا ۔لیکن جب انہوں نے ان کے کپڑوں کی تلاش کی تو وہ نہ ملے۔ انہوں نے ابو عبود  سے کپڑوں کے بارے میں پوچھا۔

ابوعبود نے ان سے کہا:  کل تو ویسے بھی قیامت آ جائے گی۔اس لیےمیں نے  وہ سارے کپڑےکھانا پکانے کے لیے آگ میں ڈال دیے۔

 

भेड़ का बच्चा

अबू अब्बूद नाम का एक अच्छा आदमी था। उसके पास एक मेमना था जिसे उसके सभी दोस्त खाना चाहते थे। इसलिए एक रात सभी दोस्त एक साथ एक योजना पर सहमत हुए जिसके द्वारा अबू अबूद एक मेमने का वध करेगा और हमें खिलाएगा।

अगले दिन अबूद का दोस्त अबू दाऊद आया और दरवाज़ा खटखटाया। अबू दाऊद ने कहा:

"अपनी भेड़ों को घात करो, क्योंकि कल न्याय का दिन है।"

अबू अबूद ने उससे कहा, "मैं तुम पर विश्वास नहीं करता।" अबू दाऊद चला गया।

 एक और दोस्त अबू अब्दुल्ला आया और दरवाज़ा खटखटाया अबूद ने दरवाज़ा खोला। अबू अब्दुल्ला ने कहा:

"भेड़ के जीवित रहने का लाभ? प्रलय का दिन कल है या परसों वैसे भी।"

परन्तु अबूद ने क्रोधित होकर उस से कहा, मुझ से दूर रह, मैं तेरी नहीं सुनता।

 फिर आया अबूद का तीसरा दोस्त। उसने यह भी कहा कि कल पुनरुत्थान होगा इसलिए भेड़ों का वध करो।

 इधर अबू अबूद ने खुद से बात की और कहा कि उन्हें यकीन है कि कल न्याय का दिन है, शायद ये लोग सही हैं।

फिर उसने अपने दोस्तों को बुलाया और कहा कि वह कल सुबह समुद्र तट पर एक मेमने का वध करेगा। भोर होते ही वे इकट्ठे हो गए और भेड़ों को वध कर दिया।

लेकिन अबू अबूद के दोस्तों ने उसे अकेला छोड़ दिया और अपने कपड़े उतार कर नहर में नहाने चला गया। किसी ने अबू अब्बूद को मेमना पकाने में मदद नहीं की। अब उसने सोचा कि अपने दोस्तों की भीड़ को मारने की इस चाल से उसे धोखा दिया गया है अब उसने बदला लेने के बारे में सोचा।

जब वह मेमने को पका रहा था, अबू अब्बूद को अपने दोस्तों के कपड़े मिले जो उसने नहर के पास रखे थे। उसने मेमने को पकाने के लिए इन कपड़ों को ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया।

 इसी बीच अबूद के दोस्त थक हार कर पानी से बाहर निकल आए। भूख ने उन्हें मार डाला था, लेकिन जब उन्होंने अपने कपड़ों की तलाशी ली तो वे नहीं मिले। उसने अबू अब्बूद से कपड़ों के बारे में पूछा।

अबू अबूद ने उस से कहा, कल तो वह घड़ी भी आएगी, सो मैं ने उन सब वस्त्रोंको पकानेके लिथे आग में रख दिया।